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मुझे एकता चाहिए

एक बार चार व्यापारी (हिन्दू, मुस्लमान, सिक्ख, और ईसाई) तागेँ मे जँगल से गुजर रहे थे। अचानक ऊँचे रस्ते पर घोड़े को एक काला साँप दिखाई दिया और घोड़ा कुदने लगा। जिससे ताँगा निचे गहराई मे चा गिरा।

आवाज सुनकर नजदिक से एक लकड़हारा दौड़ा आया। उसने उन चारोँ की मदद की। जैसे ताँगे को ठीक किया ओर उन चारौँ के जख्मोँ पर पट्टि की। चारोँ उसकी सेवा से बहुत प्रश्न्न हुए। और क्हा कि हम तुम्हारी सेवा से बहुत खुश हैँ। माँगो! तुम जो चाहे माँगो! हम चारोँ मिलकर तुम्हारी माँग को पुरा करेँगेँ। तब लकड़हारा बोला कि भगवान की दया से मेरे पास सबकुछ है। मुझे कुछ नहिँ चाहिए। तब उन चारोँ ने उसपर दबाव दिया कि वो कुछ माँगेँ। तो अँत मे लकड़हारा बोला कि "मुझे एकता चाहिए!"

चारोँ के चारोँ शाँत हो गए और बहुत सोचने के बाद बोले कि यह तो पुरे देश के हाथ मे है। हिन्दू बोला फिर भी मैँ राम से प्रार्थना करुँगा। मुस्लिम मैँ अल्लहा से, सिक्ख मैँ वाहे गुरु से, और ईसाई बोला मै भी गोड़ से प्रार्थना करुँगा।
यह सुनकर लकड़हारा आग बबुला हो गया और बौला कि तुम खाक प्रार्थना करोगे। खुद ही अनेकता फैलाते हो और खुद ही प्रार्थना।

वे चारोँ बोले कि भाई हम समझे नहिँ। तो लकड़हारा बोला कि "क्या राम, अल्लहा, वाहे गुरु, और गोड़, चारौँ अलग-अलग है।"
भगवान एक है। जैसे तुम चारोँ का एक ही अन्न, एक ही जल, और एक ही छत्त (आसमान) है। तो तुम चारोँ अलग-अलग कैसे हो? क्या तुम जानते हो कि वास्तव मे तुम्हारा घर्म कौन सा है? ये सब धर्म, जातियाँ किसने बनाई है?

फिर लकड़हारा शाँत होकर बोला- "ये सब धर्म, जातियाँ 'स्वार्थ' ने बनाए है। आज मनुष्य ने स्वयं को इतने भागोँ मे बाटँ लिया है कि आज वो स्वयं को पहचान नहिँ सकता है। हमसब का केवल एक घर्म है 'मानवता'।"

फिर लकड़हारे ने उन्हे ताँगेँ मे बैठाया और अलविदा किया। तब जाते हुए उन चारोँ ने मिलकर कहा:

"हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, हम सब है भाई-भाई॥"
Writer: Ashish Ghorela

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